हिन्दी की बोलियों को खतरा हिन्दी से नहीं अंग्रेजी से है
आज हिन्दी फिर राजनीतिकरण का शिकार हो रही है। हिन्दी की बोलियों को इससे अलग कर हिन्दी को कमजोर करने की साजिश रची जा रही है। आज भोजपुरी, राजस्थानी को 8 वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही हैं। अगर ऐसा होता हैं तो 30 करोड़ लोग हिन्दी भाषी नहीं माने जायेंगे। जिससे हिन्दी को भारत का राजभाषा बनाने का दावा कमजोर होगा एवं अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ेगा। ये बातें शासकीय शहीद कौशल यादव महाविद्यालय गुण्डरदेही में रूसा के अंतर्गत आयोजित व्याख्यान माला में ष् हिन्दी भाषा एवं उसकी बोलियांष् विषय पर अपनी बातें रखते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.अमरनाथ शर्मा ने कही। हिन्दी भाषा और उसके बोलियों के अंतर्सम्बध पर प्रकाश डालते हुए प्रो.शर्मा ने बताया कि हिन्दी की अट्ठारह बोलियां आपस में बहन के समान हैं। 10 राज्यों के हिन्दी भाषी लोग अपनी बोलियों के साथ हिन्दी को अपनी मातृभाषा के रूप में स्वीकार करते हैं। हिन्दी की बोलियों की यही एकता इसकी ताकत हैं, परंतु कुछ लोग इस एकता को तोड़कर हिन्दी के बोलियांे को अलग - अलग भाषा का दर्जा दिलाना चाहते हैं। जिससे कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता हैं। उन्होंने उदाहारण देकर बताया कि सिन्धी, नेपाली, डोगरी भी 8 वीं अनुसूची में शामिल हैं, लेकिन इससे इन भाषाओं का कौन सा कल्याण हुआ। आज कुछ लोग भोजपुरी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मगही आदि को 8 वीं अनुसूची मंे शामिल करने का मांग कर रहें हैं। अगर इन भाषाओं को 8 वीं अनुसूची मंे शामिल कर भी लिया जाये तो इससे इनका कोई भला होने वाला नहीं हैं। सिवाय कुछ लोगों को पुरस्कार मिलेगा, कुछ लोगों को रोजगार भी परंतु ऐसा होने से अब वे हिन्दी भाषी नहीं मानें जायेगें जो कि एक प्रकार का झूठ होगा। सच ये है कि इन क्षेत्रों में बोलचाल एवं शिक्षा का माध्यम हिन्दी है। ऐसा होने से हिन्दी को भारत का राजभाषा होने का दावा कमजोर होगा। हिन्दी के कमजोर होने से अंगे्रजी का वर्चस्व बढे़गा। शासन - प्रशासन से लेकर सभी परीक्षाओं में अंग्रेजी का ही बोल बाला होगा। हिन्दी को विभाजनकारी तत्वों से हिन्दी भाषी लोगों को सावधान रहना होगा। आज हिन्दी की बोलियां एक साथ हैं, तभी अवधी के तुलसी का रामचरित मानस, भोजपुरी के कबीरदास, ब्रजभाषा के सूरदास, छत्तीसगढ़ी के विनोद कुमार शुक्ल के रचनाओं को रसास्वादन एक साथ कर पाते हैं। अगर ये बोलियां अलग - अलग हो गई तो इससे वंचित होना पडे़गा इस कार्यक्रम में शासकीय कंगला मांझी महाविद्यालय डौंडी, जिला - बालोद (छ.ग.) के प्राचार्य, डाॅ.यू.के.मिश्रा ने भी हिन्दी भाषा एवं बोलियां पर अपने विचार रखें। कार्यक्रम का संचालन रूसा प्रभारी डाॅ.के.डी.चावले, सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र ने किया। इस अवसर पर वरिष्ठ प्राध्यापक डाॅ.डी.आर.मेश्राम, डाॅ.(श्रीमती) निगार अहमद, सहायक प्राध्यापक, अंग्रेजी, अतिथि प्राध्यापकगण एवं भारी संख्या में छात्र - छात्राएं उपस्थित हुए। धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक डाॅ.ए.के.पटेल, सहायक प्राध्यापक, हिन्दी ने किया।